रुपिका भटनागर। हाल ही में अपने पति की हत्या से चर्चा में आई सोनम रघुवंशी जैसी कुछ महिलाओं के बाद ऐसा लगने लगा कि सम्पूर्ण जगत में महिलाए ऐसी ही हो गई है I सोशल मीडिया से आम चर्चा तक महिलाओं को लेकर व्यंग और संदेह दोनों बढ़ गया है I इसी बीच समाजवादी पार्टी (सपा) की पूर्व प्रवक्ता एवं सक्रिय राजनीतिज्ञ डॉ. रोली तिवारी मिश्रा (Dr. Roli Tiwari Mishra) ने हाल ही में अपने जीवन के चार वर्षों के संघर्षों को साझा किया है, जो न केवल व्यक्तिगत बल्कि परिवारिक तथा राजनीतिक दृष्टिकोण से भी चुनौतीपूर्ण रहे हैं। उनके अनुभव इस बात का प्रमाण हैं कि कैसे संकट के समय व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को निभा सकता है, और संघर्ष करते हुए भी सब कुछ संभाल सकता है।
जीवन का सार
आगरा में जन्मी डॉ. रोली पत्रकारिता एवं हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर हैं। इन्होंने “लोक रंगमंच” पर शोध किया है। बचपन से डॉ. रोली का कविता लेखन के साथ-साथ कई सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़ाव रहा है। “दैनिक जागरण” में पत्रकार के तौर पर करियर की शुरुआत करने के बाद कुछ समय आकाशवाणी पर उद्घोषिका रहीं। डॉ. रोली ने पत्रकारिता विभाग में प्रवक्ता के तौर पर कुछ समय कार्य भी किया। डॉ. रोली तिवारी मिश्रा तीन वर्षो तक राज्य महिला आयोग की सदस्य भी रही है। समाजवादी पार्टी के टिकट पर मुस्लिम बाहुल्य आगरा दक्षिण विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का साहसिक कदम उठाया था। उनकी राजनीतिक यात्रा में उनके सामर्थ्य और साहस को उनके परिवार और समुदाय के प्रति उनकी जिम्मेदारियों से समझा जा सकता है। बाद में स्वामी प्रसाद मौर्य के समाजवादी पार्टी में रहते हुए श्री राम चरित मानस पर अभद्र टिप्पड़ियो के चलते उन्होंने पार्टी को छोड़ दिया और प्रखर रूप से सनातनी विचारधारा को आगे बढ़ाने में लग गयी I
जीवन में आया वो कठिनतम समय
डॉ. रोली ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “2021 में मैं और मेरा परिवार कोविड-19 के डेल्टा वैरिएंट से गंभीर रूप से प्रभावित हुए। यह उस समय की बात है जब मुझे लगा कि हम सभी इस बीमारी के शिकार हो गए हैं।” उन्होंने बताया कि उनके पति और बेटी अस्पताल में भर्ती रहे, जबकि वह स्वयं भी गंभीर स्थिति में थीं।
जैसे ही एक चुनौती खत्म हुई, दूसरी ने दस्तक दी। डॉ. रोली उन दिनों को याद करते हुए लिखती हैं कि जून 2021 में मेरे पति की पोस्टिंग त्रिपुरा हो गई, जिससे मैं अकेली रह गई। अगस्त में माँ को असाध्य रोग का सामना करना पड़ा। डॉक्टरों ने कहा कि उनके पास ज्यादा समय नहीं है,
इन संकटों के बीच, डॉ. रोली ने अपने पिता, पति, माँ और ससुर की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना किया। “मेरे पापा की तबियत बिगड़ती गई, उन्हें बाथरूम में गिरने के कारण गंभीर चोटें आईं। एक ओर ससुर जी गैंगरीन से जूझ रहे थे। इस सब के बीच, उन्होंने अपनी बड़ी बेटी की बोर्ड परीक्षाओं और छोटी बेटी की पढ़ाई का भी ध्यान रखा
राजनीतिक जीवन का चुनाव
एक समय ऐसा आया जब डॉ. रोली ने राजनीतिक जीवन से दूरी बनाने का निर्णय लिया। रोली लिखती है कि मैंने महसूस किया कि उस समय मेरी प्राथमिकता मां को बचाना था। जबकि राजनीति का एक भाग होने के नाते, मैंने तय किया कि मुझे अपने परिवार को पहले रखना है। इसी बीच राजनीतिक स्थिति में दुविधा और भी बड़ी हुई जब उनकी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव ने श्रीरामचरितमानस को जलाया। उसके बाद उन्होंने निर्णय लेते हुए समाजवादी पार्टी से किनारा कर लिया
“मैंने अपनी धार्मिक भावनाओं के आधार पर पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव द्वारा श्रीरामचरितमानस को जलाने का विरोध किया और वह पार्टी छोड़ दी, जो मेरे लिए परिवार जैसी थी,”
डॉ. रोली तिवारी मिश्रा
उपलब्धियां और संतोष
इन कठिनाइयों के बावजूद, डॉ. रोली ने अपने परिवार को संभालने में सफलता हासिल की है। उनकी बेटी ने CUET में लगभग 99% अंक हासिल किए हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैम्पस के प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला लिया है। उनकी माँ चार वर्षों से स्वास्थ्य समस्याओं से लड़ रही हैं ।
डॉ. रोली ने कहा, “मैं स्वीकार करती हूँ कि मैं एक अधूरी राजनीतिज्ञ हूँ, लेकिन गर्व से कह सकती हूँ कि मैं एक सफलतम बेटी, बहू, माँ और पत्नी हूँ।” उनकी यह स्वीकार्यता हमें यह सिखाती है कि जीवन में योगदान देना और परिवार की जिम्मेदारियों को निभाना ही असली सफलता है।
डॉ. रोली तिवारी मिश्रा की कहानी एक प्रेरणादायक यात्रा है जो हमें यह बताती है कि कठिनाइयों में भी कैसे भारतीय महिलाए राजनैतिक, सामाजिक जीवन में सक्रीय रहने के बाद भी वो अपने परिवार और समाज के प्रति जिम्मेदारियों को निभा रही है । उनकी अनुकरणीय संघर्ष और उनके विश्वास ने साबित किया है कि असली जीत केवल राजनीतिक सफलता में नहीं, बल्कि व्यक्तिगत और पारिवारिक संघर्षों में भी होती है। वे एक जीवंत उदाहरण हैं कि कैसे जीवन के हर क्षण को संजीवनी शक्ति में बदला जा सकता है।