दिल्ली विश्वविद्यालय ने संस्कृत गुरु को किया याद

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विवेक शुक्ला, नई दिल्ली । दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के लिए मंगलवार का दिन यादगार रहा। संस्कृत विभाग  अपने पहले अध्यक्ष और प्रकांड विद्वान डॉ. इंद्र चंद्र शास्त्री की किताब ‘   ए स्टडी आफ न्याय मंजरी’ के लोकार्पण  का साक्षी बना किया। हालांकि डॉ. शास्त्री संस्कृत के विद्वान थे पर उन्होंने उपर्युक्त पुस्तक अंग्रेजी में लिखी।  वे दिल्ली विश्वविद्यालय के  संस्कृत विभाग से 1953 में जुड़े थे। डॉ शास्त्री ने अपने   जीवन के अंतिम करीब तीन दशकों तक नेत्र ज्योति चली जाने के बावजूद अध्यापन और लेखन जारी रखा। उन्होंने 70 पुस्तकें और लगभग 300 शोध पूर्ण निबंध लिखें।


दिल्ली विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग तथा डॉ  इन्द्र चंद्र शास्त्री रिसर्च इंस्टीट्यूट के संयुक्त तत्वधान में कार्यक्रम संपन्न हुआ।  केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रो. श्रीनिवास वर्कखेड़ी के अलावा इस अवसर पर दिल्ली और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के संस्कृत के ढेरों अध्यापकों, विद्यार्थियों के अलावा डॉ.  शास्त्री के पुत्र स्नेह सुमन और पुत्री ड़ॉ इंदु सुंदरी भी उपस्थित थे।

दरअसल प्रो. शास्त्री ने उपर्युक्त पुस्तक को 60 वर्ष पूर्व 1956 में लिखा था लेकिन विपरीत परिस्थितियों तथा शिक्षा जगत की अपेक्षा के कारण यह पुस्तक अब उनके पुत्र और चिंतक स्नेह सुमन के प्रयासों से प्रकाशित हो सकी है।

डॉ शास्त्री पर भारत सरकार ने 2004 में एक डाक टिकट जारी किया था।  दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 1994 में शक्ति नगर नांगिया पार्क के मुख्य मार्ग का नाम प्रो. इन्द्र चंद्र शास्त्री के नाम पर रखा था। डॉ इंद्रचंद्र शास्त्री संस्कृत साहित्य, विशेष रूप से काव्यशास्त्र और दर्शन के क्षेत्र में अपने गहन अध्ययन और शोध के लिए जाने जाते हैं। उनकी विद्वता और शिक्षण शैली ने संस्कृत विभाग में उनकी विशिष्ट पहचान बनाई। उन्होंने संस्कृत साहित्य, व्याकरण, और भारतीय दर्शन के विभिन्न पहलुओं पर गहन अध्यापन और शोध कार्य किया।  वे विशेष रूप से काव्यशास्त्र (अलंकार शास्त्र) और भारतीय साहित्यिक सिद्धांतों में निपुण थे। उनके शोध कार्यों ने संस्कृत साहित्य की समकालीन समझ को समृद्ध किया।



डॉ. इंद्र चंद्र शास्त्री की रचनाएँ संस्कृत के गूढ़ सिद्धांतों को सरल और सुगम ढंग से प्रस्तुत करने के लिए जानी जाती हैं। उनके शिक्षण और मार्गदर्शन ने कई छात्रों को संस्कृत साहित्य और भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेरित किया। उनके द्वारा पढ़ाए गए पाठ्यक्रम और शोध निर्देशन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग की प्रतिष्ठा को और बढ़ाया। डॉ शास्त्री का 1986 में निधन हो गया था।

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