1995 में भारतीय टेलीविजन पर एक ऐसे मंच का उदय हुआ जिसने अनगिनत गायकों के लिए सपनों की राह खोली – ‘सा रे गा मा पा’। इस ऐतिहासिक पहले सीज़न की विजेता के रूप में उभरकर सामने आईं संजीवनी भेलांडे, जिनका नाम संगीत की दुनिया में हमेशा उस नवप्रवर्तनकारी पल से जुड़ा रहेगा। संगीतकार खय्याम जैसे सम्मानित जज ने जब उन्हें विजेता घोषित किया, तो यह सिर्फ एक प्रतियोगिता का अंत नहीं था, बल्कि एक नए सफर की शुरुआत थी। जल्द ही, निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने उन्हें अपनी 1998 की फिल्म ‘क़रीब’ में प्लेबैक सिंगिंग का अवसर दिया, जिससे संजीवनी किसी भी टैलेंट हंट टीवी कार्यक्रम से निकलकर हिंदी फिल्म उद्योग में पार्श्व गायिका बनने वाली पहली शख्सियत बन गईं।
शैक्षणिक पृष्ठभूमि और बहुआयामी प्रतिभा
संजीवनी भेलांडे का जन्म 26 जनवरी 1970 को महाराष्ट्र में हुआ था। एक प्रोफेसरों के प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखने वाली संजीवनी स्वयं भी एक कुशल शिक्षिका हैं। उन्होंने संगीत विशारद में अपनी डिग्री हासिल की है, जो संगीत के प्रति उनके गहन समर्पण को दर्शाता है। संगीत के क्षेत्र में उनकी महारत गायन तक ही सीमित नहीं है; वह ओडिसी और कथक जैसे शास्त्रीय नृत्य रूपों में भी प्रशिक्षित हैं। यह कलात्मक बहुमुखी प्रतिभा उनके संगीत को एक अनूठी गहराई प्रदान करती है। शिक्षा के प्रति उनका रुझान अकादमिक क्षेत्र में भी दिखाई देता है, जहाँ उन्होंने कॉमर्स में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की है और मास कम्युनिकेशन में डिप्लोमा भी किया है। यह शैक्षणिक पृष्ठभूमि उन्हें संगीत के व्यावसायिक और रचनात्मक दोनों पहलुओं को समझने में मदद करती है।
सांगीतिक यात्रा: ‘क़रीब’ से लेकर हिट गानों तक
‘क़रीब’ फिल्म में उन्हें प्लेबैक सिंगिंग का पहला बड़ा मौका मिला, जहाँ उन्होंने “चोरी चोरी नज़रें मिली” सहित छह मधुर रोमांटिक गीत गाए। भले ही फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बहुत सफल न रही हो, लेकिन इसके गाने, विशेषकर “चोरी चोरी नज़रें मिली,” बेहद लोकप्रिय हुए और आज भी सुने जाते हैं। यह गाना संजीवनी के करियर का एक मील का पत्थर साबित हुआ।
उनके द्वारा गाए गए अन्य प्रमुख हिंदी फिल्मी गीत हैं:
- “निकम्मा किया” और “यारा रब रस जाने दे” (फिल्म: सोचा ना था)
- “उलझनो को दे दिया” (फिल्म: नियम)
- “मखमली ये बदन” (फिल्म: सड़क)
- “चिड़िया तू होती” (फिल्म: नायक)
- “चुरा लो ना दिल मेरा सनम”
- “हां जुदाई”
- “तुम जुदा होकर”
इन गीतों ने संजीवनी की आवाज़ को भारतीय संगीत प्रेमियों के दिलों में जगह दी।
पुरस्कार और मान्यता
उनकी गायकी को 1999 में “चोरी चोरी नज़रें मिली” के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका के आशीर्वाद पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त, “चुरा लो ना दिल मेरा सनम” के लिए उन्हें फिल्मफेयर और स्क्रीन अवार्ड्स में नामांकन भी मिला, जो उनकी प्रतिभा के लिए एक महत्वपूर्ण पहचान थी। ‘सा रे गा मा’ की पहली विजेता बनकर उन्होंने एक नया इतिहास रचा और यह साबित किया कि टेलीविजन प्रतिभा शो न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि यह उभरती हुई प्रतिभाओं के लिए एक लॉन्चपैड भी बन सकते हैं।
बदलते संगीत परिदृश्य पर संजीवनी का दृष्टिकोण
आज, संजीवनी भेलांडे मुख्य रूप से भक्ति गीत गाने और संगीत समारोहों में प्रस्तुति देने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। हाल के वर्षों में, वे अक्सर इस बात पर अफसोस जताती हैं कि उन्हें फिल्मी संगीत में वह अवसर नहीं मिल पाए जो वे चाहती थीं। उनका मानना है कि फिल्म निर्माता आजकल उन्हें पहले की तरह अप्रोच नहीं करते, जिसका एक कारण शायद उनकी सोशल मीडिया पर कम सक्रियता है।
संजीवनी कहती हैं, “आजकल फिल्ममेकर्स उन्हें अप्रोच ही नहीं करते हैं। हो सकता है कि शायद अब मैं उनके दिमाग में ही नहीं हूं, क्योंकि मैं सोशल कम हूं। जब में 90S के आखिर और 2000 की शुरुआत में हिंदी फिल्मों के लिए गाया करती थी, तब भी मैं इंडस्ट्री से बहुत मिक्स नहीं होती थी। मुझे ऐसा लगता है मैंने जैसा चाहा वैसा बॉलीवुड से नहीं मिला।”
उनका मानना है कि वर्तमान गायकों जैसे सुनिधि चौहान या श्रेया घोषाल को ध्यान में रखकर गाने तैयार किए जाते हैं, जो उन्हें बखूबी सूट करते हैं। वहीं, संजीवनी के लिए, “ये जो भी ट्रैक गा रही हैं वो उन्हें सूट करता है, लेकिन ऐसा मेरे साथ नहीं हुआ।”
संगीत की कलात्मकता बनाम व्यावसायिकता
संजीवनी संगीत की कलात्मकता और व्यावसायिकता के बीच के संघर्ष पर भी प्रकाश डालती हैं। वे बताती हैं, “किसी सिंगर का सॉन्ग हिट होता है तो सभी उसके पीछे भागते हैं। लेकिन जब बात म्यूजिक की होती है तो सिंगिंग की भी अपनी लिमिटेशंस होती हैं। उदाहरण के लिए अगर मैं अगर कोई बॉलीवुड नंबर किसी रिकॉर्डिंग स्टूडियो में गा रही हूं तो मैं मुरकी (तान) भी जोड़ना पसंद करती हूं, लेकिन म्यूजिक डायरेक्टर और प्रोड्यूसर बीच में इंटरफेयर करते हैं। और बोलते हैं, अरे ये तो ज्यादा क्लासिकल हो गया। ऐसा मत करो। किसी को पसंद नहीं आएगा।”
यह टिप्पणी आज के संगीत उद्योग की उस प्रवृत्ति को दर्शाती है जहाँ कलात्मकता पर व्यावसायिकता और आम जनता की पसंद को अधिक महत्व दिया जाता है। संजीवनी इस बात पर जोर देती हैं कि भारत जैसे देश में जहाँ “लगा जा गले” और “लागा चुनरी में दाग” जैसे क्लासिकल और अर्थपूर्ण गाने पसंद किए जाते हैं, वहाँ संगीतकारों को केवल “पॉपुलर” संगीत तक सीमित नहीं रहना चाहिए।
भक्ति संगीत की ओर झुकाव
फिल्मी संगीत में अपनी उम्मीदों के अनुसार अवसर न मिलने के बाद, संजीवनी ने भक्ति संगीत के क्षेत्र में अपनी राह बनाई। उन्होंने अब तक सैकड़ों भक्ति गीत गाए हैं, जिससे उनकी गायकी की भूख उन्हें अधिक संतुष्टि के साथ पूरी होती है। वे कहती हैं, “गाने की भूख गायकी वाले गानों से ही पूरी होती है ना कि फिल्मी म्यूजिक से।” यह कथन उनके संगीत के प्रति गहरे प्रेम और उस संतुष्टि को दर्शाता है जो उन्हें उस संगीत में मिलती है जो उनकी आत्मा को छूता है।
लेखन और अन्य कलात्मक प्रयास
संजीवनी भेलांडे का कलात्मक सफर सिर्फ गायन तक ही सीमित नहीं है। जैसा कि उल्लेख किया गया है, वह न केवल संगीत विशारद हैं, बल्कि एक प्रशिक्षित ओडिसी और कथक नृत्यांगना भी हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने “मीरा एंड मी” नामक एक पुस्तक भी लिखी है, जो उनकी साहित्यिक रुचि और गहराई को दर्शाती है।


