विवेक शुक्ला । आप चाहें तो उनके कमरे से कनॉट प्लेस, संसद मार्ग और जयसिंह रोड के एक बड़े भाग को निहार सकते हैं। उधर से गुरुद्वारा बंगला साहिब के दर्शन भी आराम से हो जाते हैं। उनका दफ्तर दिल्ली पुलिस के नए हेड क्वार्टर की 15 वीं फ्लोर पर है। उनकी सीट की दायीं तरफ की दीवार पर दिल्ली पुलिस की गुजरे जमाने की बहुत सी ब्लैक एंड व्हाइट फोटो करीने से लगी हुई हैं। उन्हें देखकर दिल्ली पुलिस के बदलते हुए चेहरे को समझा जा सकता है। कुछ फोटो तब की भी हैं जब दिल्ली पुलिस के सिपाही निकर पहनकर ड्यूटी देते थे।
आप जैसे ही फोटो को देखकर अपनी सीट पर बैठते हैं, तब ही तजेन्द्र सिंह लूथरा का अपने कमरे में प्रवेश होता है। उनकी मेज पर ‘एक नया ईश्वर ’ कविता संग्रह रखा है। उस पर उनका नाम लिखा है। हम लगभग अविश्वसनीय भाव से पूछते हैं, ‘आप कविताएं भी लिखते हैं और वो भी हिंदी में…’? वे जवाब देते हैं, ‘मैं कई वर्षों से कविता लिख रहा हूं। मेरा पहला कविता संग्रह ‘अस्सी घाट का बांसुरी वाला’ 2012 में ही आ गया था।’ फिर वे हमारे हिंदी वाले प्रश्न का उत्तर देते हैं। ‘दरअसल मेरा संबंध उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से है। इसलिए हिंदी में मेरी स्वाभाविक गति रही है। हां,घर में माता-पिता और पत्नी के साथ बातचीत पंजाबी में भी हो जाती है।’
तजेन्द्र सिंह लूथरा ने कुछ पंजाबी में भी कविताएं कहीं हैं। वे हिंदी में अपने को व्यक्त करने में ज्यादा बेहतर महसूस करते हैं। वे अपनी कविताओं का इंग्लिश में अनुवाद भी करते हैं। तो कह सकते हैं कि वे तीन भाषाओं में रचना कर्म कर रहे हैं।
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तजेन्द्र सिंह लूथरा आजकल दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर हैं। 1990 बैच के आईपीएस अफसर हैं। पुलिस की 24×7 नौकरी के बाद कविता कहने –पढ़ने का वक्त मिल जाता है ?‘ मेरे लिए कविता अपने आपको परीक्षण करने की एक विधि है। अपने आप से संवाद करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। इसलिए मैं कविताएं कहता-पढ़ता हूं। पर ज्यादा पढ़ता ही हूं।’ इससे पहले कि वार्तालाप का रुख पुलिस की दुनिया की तरफ मुढ़ जाए वे अपनी एक कविता ‘धीरे-धीरे’ सुनाते हैं। आप भी पढ़ लीजिए। ‘शब्द पकड़ा, अर्थ बीत गया, अर्थ जागा तो शिल्प रीत गया, शिल्प समझा तो बिम्ब सूना, बिम्ब उतरा तो रस जूठा, रस आने लगा तो जीवन बीत गया।’
लूथरा जी की चाहत है कि वे अपने लेखन पर और अधिक ध्यान दें। पर फिलहाल दिल्ली में अपराधियों के इरादों को नाकाम करने की रणनीति बनाने में उनका फोकस ज्यादा रहता है। वे मानते हैं कि दिल्ली की बढ़ती आबादी के कारण अपराध पर काबू पाना चुनौती तो है। साइबर क्राइम को भी रोकना होगा। संवाद अब क्राइम की दुनिया पर होने लगा था। ग्रीन टी भी आ गई थी।
दिल्ली वालों को याद होगा कि साल 2005 में लिबर्टी और सत्यम सिनेमा घरों में विस्फोट हुए थे। उन धमाकों से राजधानी में दहशत पैदा हो गई थी। उस केस को तजेन्द्र सिंह लूथरा ने ही क्रैक किया था। बम विस्फोटों के सूत्रधार जगतार सिंह हवारा को उन्होंने फोन काल की सघन जांच के बाद पकड़ा था। हवारा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या में भी शामिल था। उसका संबंध बब्बर खालसा नाम के भारत विरोधी संगठन से था। हवारा के निशाने पर कई बड़े नेता और सरकारी अफसर थे।
बातचीत के साथ वक्त बीता जा रहा था और नीचे जयसिंह रोड पर ट्रैफिक बढ़ रहा था। उसे हम लूथरा जी के कमरे से देख रहे थे। इसलिए हमने उनसे उनके लोहे जैसे मजबूत हाथ को मिलाकर विदा ली। एक बार फिर शीशे से बाहर देखा। तब तक बंगला साहिब गुरुद्वारा में श्रद्धालुओं का आना-जाना बढ़ गया था। उनके दफ्तर से निकले तो 36 साल पहले 1988 का जमाना याद आने लगा। जिधर दिल्ली पुलिस का नया हेडक्वार्टर बना है, वहां पर कभी दिल्ली पुलिस के आला अफसरों के घर होते थे। उनमें किरण बेदी भी रहती थीं। उनका ही तब हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए इंटरव्यू करने आए थे। हमने इंटरव्यू किया था ।