भारत के प्रशासनिक ढांचे में डीएम (जिलाधिकारी) और पुलिस कमिश्नर जैसे पदों को लेकर आम नागरिकों समेत कई पेशेवरों के मन में सवाल उठते रहते हैं। दोनों ही अधिकारी अपने-अपने क्षेत्र में अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनकी शक्तियों, जिम्मेदारियों और पदानुक्रम में अंतर समझना आवश्यक है। ऐसे में एक आम सवाल उठता है: क्या डीएम पुलिस कमिश्नर से ज्यादा ताकतवर है, या मामला इसके उलट है ?
डीएम: जिले का प्रशासनिक सरदार
डीएम (District Magistrate) या जिलाधिकारी, एक IAS अधिकारी होता है और किसी जिले का प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी माना जाता है। यह पद भारत के प्रशासनिक ढांचे में केंद्रीय भूमिका निभाता है। डीएम की नियुक्ति सामान्यतः उन IAS अधिकारियों के बीच होती है, जिनके पास 5 से 6 वर्ष का सेवानुभव होता है।
मुख्य जिम्मेदारियां:
- जिले में कानून व्यवस्था (Law and Order) की जिम्मेदारी, खासकर (BNSS) की धारा 125 ( पूर्व में धारा 144) लागू करने या जनसभाओं पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार।
- राजस्व प्रशासन, भूमि रिकॉर्ड, लेखपाल विभाग, और टैक्स संग्रह की देखरेख।
- सरकारी योजनाओं (PMAY, NSAP, आयुष्मान भारत आदि) के क्रियान्वयन की निगरानी।
- आपदा प्रबंधन, बाढ़, महामारी या अन्य आपातकाल की स्थिति में आपातकालीन प्रतिक्रिया के लिए नोडल अधिकारी की भूमिका।
डीएम राज्य सरकार के प्रत्यक्ष प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करता है। उसके फैसले जिले के सभी प्रशासनिक विभागों पर लागू होते हैं, जिसमें पुलिस भी शामिल है—खासकर गैर-महानगरीय क्षेत्रों में।
पुलिस कमिश्नर: शहरी सुरक्षा का सर्वोच्च प्रहरी
पुलिस कमिश्नर का पद मुख्यतः महानगरों में देखने को मिलता है, जहां जनसंख्या घनत्व, अपराध दर और प्रशासनिक आवश्यकताएं अधिक जटिल होती हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, चेन्नई और कुछ बड़े राज्यों के स्मार्ट सिटीज में कमिश्नरेट सिस्टम लागू है। उत्तर प्रदेश में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली (Police Commissionerate System) 2020 में पहले गौतम बुद्ध नगर (नोएडा) में प्रयोग के तौर पर शुरू किया गया था, और अब यह प्रणाली लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, आगरा, प्रयागराज और गाजियाबाद समेत कुल 7 महानगरों में कार्यशील है।
एक पुलिस कमिश्नर एक आईपीएस अधिकारी होता है और सीधे किसी भी राज्य सरकार या केंद्र शासित प्रदेश की मेयर कमेटी के अधीन काम करता है। इस पद पर नियुक्त अधिकारी को एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के अधिकार भी प्राप्त होते हैं।
मुख्य जिम्मेदारियां:
- शहर में कानून व्यवस्था की पूर्ण जिम्मेदारी।
- पुलिस विभाग का प्रशासनिक और संचालनात्मक प्रभारी – SP, DCP और अन्य अधिकारी उनके प्रत्यक्ष नियंत्रण में होते हैं।
- जांच, गिरफ्तारी, और आपराधिक नियंत्रण की रणनीति तय करना।
दिल्ली में कमिश्नर का रैंक DGP (Director General of Police) जैसा होता है, जबकि यूपी के नोएडा और अन्य शहरों में IGP या ADG समकक्ष अधिकारी नियुक्त होते हैं।
कौन है ज्यादा पावरफुल?
इस सवाल का उत्तर “स्थिति” और “स्थान” पर निर्भर करता है।
- गैर-कमिश्नरेट जिलों (जैसे छोटे शहर या ग्रामीण इलाके) में, डीएम को सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी माना जाता है। वह पुलिस अधीक्षण (SP) को निर्देश दे सकता है।
- कमिश्नरेट सिटीज में, कमिश्नर सीधे सरकार के अधीन होता है और डीएम से स्वतंत्र होता है। दोनों के बीच समन्वय आवश्यक होता है, लेकिन कोई पदानुक्रम नहीं होता यानी दोनों बराबर होते है।
इसलिए, डीएम पूरे जिले के सामान्य प्रशासन पर नियंत्रण रखता है, जबकि कमिश्नर केवल पुलिस व्यवस्था में मुख्य अधिकारी होता है।
कैसे बनते हैं ये अधिकारी?
- डीएम बनना: UPSC सिविल सेवा परीक्षा में चयनित होकर IAS अधिकारी बनें, फिर 5-6 वर्ष की सेवा के बाद जिलाधिकारी के पद पर नियुक्ति।
- पुलिस कमिश्नर बनना: उसी UPSC परीक्षा में IPS चयनित होना, फिर ASP, DSP, SP के रूप में अनुभव अर्जित करना और फिर अनुभव व वरीयता के आधार पर कमिश्नर बनाया जाना।
डीएम और पुलिस कमिश्नर दोनों ही भारतीय प्रशासन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। सामान्य जिले में डीएम सर्वशक्तिमान होता है, जबकि बड़े शहरों में पुलिस कमिश्नर के पास पुलिस व्यवस्था पर विशेषाधिकार होता है। दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि समन्वय ही प्रभावी शासन की कुंजी है। जनता की सुरक्षा और विकास के लिए इन दोनों की भूमिका अतुलनीय है
