भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, जो इस वर्ष विशेष महत्व रखती है, को भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह स्वरूप की जयंती मनाई गई। भक्तों का मानना है कि इसी दिन भगवान ने वराह रूप धारण कर धरती को पाताल लोक से उठाया, जिसे हिरण्याक्ष नामक दैत्य ने पकड़ लिया था। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु की ऊंचाई तब 75,000 किलोमीटर और चौड़ाई 40,000 किलोमीटर थी, जो पृथ्वी की भौतिकता के अनुरूप थी।
वराह अवतार की पौराणिक कथा में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने एक करोड़ योजन चौड़े उस काज्मिक ओसियन से पृथ्वी को मुक्त किया, जिसमें एक हजार पृथ्वी समा सकती थीं। यह विशाल महासागर केवल कल्पना नहीं, बल्कि एक गहरी सांस्कृतिक और धार्मिक तत्त्वज्ञा का प्रतीक है।
वराह की अवतार की कारणों की छानबीन
सवाल यह उठता है कि भगवान ने वराह का रूप क्यों धारण किया? इसका उत्तर भी शोधित है। वराह, जो कि जंगली सूअर के समान है, कीचड़ में रहने की आदत और अपनी थूथनी से मिट्टी खोदने की क्षमता के चलते वह उपयुक्त था। यही वजह है कि भगवान ने इस स्वरूप को धारण कर हिरण्याक्ष को खोज निकाला और पृथ्वी को उसके चंगुल से मुक्त किया।
यह घटना हमें यह सिखाती है कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म का बढ़ाव होता है, तब भगवान किसी न किसी रूप में मानवता की रक्षा के लिए अवतरित होते हैं। वराह जयंती का दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह धर्म की विजय और अधर्म के विनाश का प्रतीक है।
वराह जयंती 2025 शुभ मुहूर्त
भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि 25 अगस्त को दोपहर के 12.35 बजे शुरू होकर 26 अगस्त की दोपहर को 1.54 बजे समाप्त हो रही है। पूजा के अति शुभ समय दोपहर के 1.40 बजे से लेकर शाम के 4.15 बजे तक होगा।
वराह जयंती पूजा विधि
- सबसे पहले स्नान आदि से निवृत होकर भगवान वराह की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं।
- उसके बाद धूप दीप से आरती उतारें और भोग लगाएं।
- इस दिन हिरण्याक्ष वध की कथा का पाठ जरूर करें।
- ब्राह्मण को भोजन करायें तथा दक्षिणा दें।
- वराह जयंती के दिन वराह स्त्रोत और कवच का पाठ जरूर करना चाहिए।
आज के दिन विभिन्न मंदिरों में विशेष पूजा, हवन और प्रवचन आयोजित किए जाते हैं। भक्तगण इस दिन व्रत रखते हैं और भगवान वराह के मंदिरों में जाकर दर्शन करते हैं। कुछ भक्त तिल, गुड़, पंचामृत और पीले पुष्प अर्पित कर अपने श्रद्धा का प्रदर्शन करते हैं।
आधुनिक युग में धार्मिक उत्सव की प्रासंगिकता
धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, वराह जयंती हमारी सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें याद दिलाती है कि आस्था और संस्कृति के आधार पर, हम समाज में धर्म और नैतिकता के पक्षधर बन सकते हैं।
वास्तव में, वराह जयंती केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा अवसर है जो मानवता को अपने मूल्यों और नैतिकता की ओर पुनः जागरूक करता है। जब हम इस दिन भगवान विष्णु के वराह स्वरूप की पूजा करते हैं, तब हम अपने अंदर की बुराइयों और अधर्म के खात्मे का संकल्प लेते हैं। यह दिन न केवल हमारे धार्मिक विश्वास को मजबूत करता है, बल्कि हमें एकजुट होकर समाज में अच्छाई की स्थापना की प्रेरणा भी देता है।