विवेक शुक्ला । साउथ अफ्रीका के महान क्रिकेटर जोंटी रोड्स मिर्गी के रोगी थे। इसके बावजूद वे क्रिकेट के महानतम फिल्डर के रूप में याद किए जाते हैं। इसका मतलब साफ है कि मिर्गी रोगी जीवन में ऊंचा मुकाम हासिल कर सकते हैं। मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जिसमें मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं में असामान्य विद्युतीय संकेत उत्पन्न होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दौरे पड़ते हैं। ये दौरे विभिन्न रूपों में प्रकट हो सकते हैं, जैसे कि अस्थायी भ्रम, अनियंत्रित मांसपेशियों की हरकतें, चेतना का नुकसान, या असामान्य व्यवहार। मिर्गी को दो मुख्य श्रेणियों में बांटा गया है: सामान्यीकृत दौरे (जो मस्तिष्क के दोनों हिस्सों को प्रभावित करते हैं) और आंशिक दौरे (जो मस्तिष्क के एक विशिष्ट क्षेत्र को प्रभावित करते हैं)। दिल्ली के एम्स में भी इस रोग के इलाज के लिए नए रिसर्च हो रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया भर में करीब 5 करोड़ लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं। मॉडर्न मेडिसिन (एलोपैथी) में मिर्गी का इलाज दवाइयों से होता है, जो 70-80% मामलों में दौरे रोकने में कामयाब हैं। लेकिन इन दवाइयों के साइड इफेक्ट्स और कुछ लोगों में दवाइयों का असर न करना, यानी ड्रग-रेसिस्टेंट मिर्गी, ने लोगों का ध्यान आयुर्वेद जैसी दूसरी चिकित्सा पद्धतियों की ओर खींचा है।
डॉ. आर.के. गुप्ता की कुछ समय पहले आई किताब “Epilepsy – Combination Therapy by Alternative Medicine” मिर्गी के इलाज में आयुर्वेद, नेचर थेरेपी और काउंसलिंग को मिलाकर एक नया रास्ता दिखाती है। उनका तरीका न सिर्फ लक्षणों को कंट्रोल करता है, बल्कि मरीज की पूरी सेहत को बेहतर बनाता है। ये खास तौर पर उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो एलोपैथी के साइड इफेक्ट्स से बचना चाहते हैं या जिनकी मिर्गी दवाइयों से कंट्रोल नहीं होती। लेकिन इस फील्ड में और साइंटिफिक रिसर्च की जरूरत है, ताकि आयुर्वेद को दुनिया भर में मान्यता मिले।मिर्गी, जिसे आयुर्वेद में अपस्मार कहते हैं, एक दिमागी बीमारी है जिसमें बार-बार दौरे पड़ते हैं। ये दौरे दिमाग में बिजली जैसी गड़बड़ी की वजह से आते हैं।

मिर्गी किसी भी आयु, नस्ल, या जाति के लोगों को प्रभावित कर सकती है। यह बच्चों से लेकर वृद्धावस्था तक किसी भी उम्र में शुरू हो सकती है। भारत में, मिर्गी को अक्सर सामाजिक कलंक के साथ जोड़ा जाता है, और इसे तंत्र-मंत्र या ऊपरी शक्तियों से संबंधित मान लिया जाता है, जिसके कारण रोगियों को उचित उपचार प्राप्त करने में बाधा आती है।
डॉ. आर.के. गुप्ता की पुस्तक मिर्गी के उपचार में आयुर्वेद, प्रकृति चिकित्सा, और मनोवैज्ञानिक परामर्श के एकीकृत दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है। उनकी पद्धति न केवल लक्षणों को नियंत्रित करती है, बल्कि मरीज के समग्र स्वास्थ्य को बेहतर बनाने पर केंद्रित है। यह दृष्टिकोण उन मरीजों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो एलोपैथिक उपचारों के दुष्प्रभावों से बचना चाहते हैं या जिन्हें दवा-प्रतिरोधी मिर्गी है। हालांकि, इस क्षेत्र में और अधिक वैज्ञानिक शोध की आवश्यकता है ताकि आयुर्वेद की प्रभावशीलता को विश्व स्तर पर मान्यता मिल सके।
आयुर्वेद में मिर्गी को कैसे समझते हैं? आयुर्वेद में मिर्गी को अपस्मार कहते हैं, यानी चेतना या याददाश्त का अचानक चला जाना। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे पुराने आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसे वात, पित्त और कफ दोषों के असंतुलन की वजह से होने वाली बीमारी बताया गया है, जिसमें वात दोष का रोल सबसे बड़ा होता है। आयुर्वेद के हिसाब से अपस्मार चार तरह का होता है:वातज अपस्मार: बार-बार दौरे, तेज सांस, मुंह से झाग आना और अजीब हरकतें। पित्तज अपस्मार: प्यास लगना, जल्दी-जल्दी दौरे और ठीक होने में टाइम लगना। कफज अपस्मार: दौरे में ज्यादा गैप, ढेर सारी लार निकलना और धीरे-धीरे ठीक होना। सन्निपातज अपस्मार: तीनों दोषों का मिक्स, जो सबसे पेचीदा होता है। आयुर्वेद कहता है कि मिर्गी की वजह गलत खान-पान, खराब खाना, टेंशन, गुस्सा, चिंता और गलत लाइफस्टाइल हो सकती हैं। ये चीजें दोषों को बिगाड़ देती हैं, जिससे दिमाग और नर्वस सिस्टम पर असर पड़ता है। आयुर्वेद का मकसद है इन दोषों को बैलेंस करना, दिमाग और दिल के रास्तों को खोलना और नर्वस सिस्टम को मजबूत करना। जानकारों का कहना है कि मिर्गी से बचाव के लिए हल्का, आसानी से पचने वाला खाना जैसे साबुत अनाज, ताजे फल और सब्जियों का ही सेवन करना चाहिए। बेहतर होगा कि कॉफी, शराब और मसालेदार खाने से बचा जाए। नियमित नींद, टेंशन कम करने के लिए मेडिटेशन और हल्की एक्सरसाइज भी जरूरी है। हठ योग, सूर्य नमस्कार और अनुलोम-विलोम जैसे प्राणायाम दिमाग को शांत करते हैं। एक स्टडी में पाया गया कि योग करने वाले 40% मरीज 6 महीने में दौरे से फ्री हो गए।
जोंटी रोड्स की तरह मिर्गी ने कई प्रसिद्ध हस्तियों को प्रभावित किया है, जिन्होंने इस बीमारी के बावजूद अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल कीं। इनमेंमशहूर डच चित्रकार विन्सेंट वैन गॉग भी हैं। उनके चित्रों में उनकी मानसिक और भावनात्मक स्थिति की झलक मिलती है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि महान कलाकार लियोनार्डो दा विंची को भी मिर्गी के दौरे पड़ते थे। प्राचीन रोमन सम्राट जूलियस सीजर को भी मिर्गी के दौरे पड़ने की बात दर्ज है, जिसे उस समय “पवित्र रोग” कहा जाता था। इन व्यक्तियों ने यह साबित किया कि मिर्गी के साथ भी एक सामान्य और सफल जीवन जिया जा सकता है, बशर्ते उचित उपचार और प्रबंधन किया जाए।
डॉक्टरों का मानना है कि कुछ मामलों में मिर्गी का आनुवंशिक आधार होता है, खासकर जब परिवार में पहले से कोई इस बीमारी से पीड़ित हो। सिर में चोट, जैसे कि दुर्घटना या खेल के दौरान लगी चोट, मिर्गी का कारण बन सकती है। ब्रेन ट्यूमर, स्ट्रोक, मस्तिष्क में संक्रमण, या डिमेंशिया जैसी स्थितियां मिर्गी के दौरे को ट्रिगर कर सकती हैं। शिशु के जन्म के दौरान मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी या विकास संबंधी विकार मिर्गी का कारण बन सकते हैं। अनियमित नींद, तनाव, शराब का अत्यधिक सेवन, या कुछ दवाओं का उपयोग भी दौरे को प्रेरित कर सकता है। हाल में आई किताब मिर्गी के इलाज में आयुर्वेद की ताकत दिखाती है और इसे मॉडर्न मेडिसिन के साथ जोड़ने का एक बड़ा कदम है।